ऑक्सीजन की कमी। आखिर क्यों?



एक वक़्त था जब रेल में सफर करते वक़्त मैं खिड़की से बाहर देखती थी अपने पापा की तरफ और वो पानी की बोतल भर रहे होते थे एक नल से जहाँ लिखा होता था 'पीने का पानी'. आज हमारे बच्चे यह सोच भी नहीं सकते।  वो नल से निकला पानी पिएंगे ही नहीं , उन्हें तो मिनरल वाटर चाहिए। अब तो ऐसा भी नहीं की वो १० रूपये में मिलती किनले, एक्वाफिना या बेली से काम चला ले , अब तो उन्हें हिमालय  , कुआ और वेदिका जैसे ब्रांड चाहिए।  आज पानी पैसे देके पीना एक आम सी बात हो गयी ,  पर भारत में कुछ वर्ष पहले तक ऐसा नहीं था।  

हमारे देश में हर गली हर मोहल्ले में प्याऊ रखने की परंपरा थी।  किसी व्यक्ति को अपनी प्यास बुझाने के लिए पैसे खर्च करने की ज़रूरत ही नहीं थी।  प्याऊ एक ऐसी जगह होती है जहाँ पीने का पानी समाज के लिए मुफ्त में उपलब्ध कराया जाता है , और यह काम सरकार नहीं करती , यह जन साधारण ही करते है।  पर हमने प्याऊ बनाने ही बंद कर दिए।  हमने समाज की प्यास बुझानी बंद कर दी क्यूंकि उससे शायद हमे तात्कालिक इनाम नहीं मिलता।  हमने इनाम को पैसों से तोलना जो शुरू कर दिया था।  

लोगों ने अपने कार्यों के दीर्घकालिक परिणामो के बारे में सोचना ही छोड़ दिया और अपना ध्यान सिर्फ तत्कालीन मिलने वाले पुरुस्कारों पर केंद्रित कर दिया। शायद यही कारण है की आज हम हवा भी खरीदने की ज़रूरत पड़ने लगी है।  

सारा देश इस वक़्त मेडिकल ऑक्सीजन की किल्लत में है।  कोविड के मरीज़ों में सबसे ज्यादा दिक्कत ये पाई  जा रही है की उनका ऑक्सीजन लेवल कम हो जाता है।  ऐसे में मेडिकल ऑक्सीजन ही एक मात्र उपाय बचता है उन्हें बचाने के लिए।   पर ऐसा क्यों है की कुछ लोगो को इतनी ज्यादा तकलीफ हो रही है जबकि कुछ बिलकुल आराम से साँसे ले प् रहे है।   कहा जा रहा है की कोविड से वे लोग एससी से लड़ पा रहे है जिनकी इम्युनिटी स्ट्रांग है।  वैसे ही जिनके लंग्स स्ट्रांग है उन्हें छोटी मोटी  तकलीफों से लड़ने की क्षमता प्राप्त है।  आज इतने लोगो को तकलीफ हो रही है इसका एक बड़ा कारण ये भी है की हमने अपने लंग्स खुद ही इतने कमजोर कर रखे है।  

 हमने पेड़ो को काटना शुरू कर दिया , गाड़ियों और फैक्ट्रियों के धुंए से वातावरण को प्रदूषित करना शुरू कर दिया।  हमने अपने शरीर को इतना कमजोर कर लिया है की रेस्पिरेटरी सिस्टम पे ज़रा भी दबाव पड़ने पर हमारा सांस लेना ही मुश्किल होने लगा है।  हमारे लंग्स इन्फेक्शन को फाइट बैक ही नहीं कर पा  रहे है।  


हमें अब बड़े बदलावों की दिशा में छोटे कदम उठाने की जरूरत है। जो क्षति हो चुकी उसे तो हम नहीं बदल सकते पर आने वाली परिस्थितियों को ज़रूर बदल सकते है । हम अभी भी प्रदूषण को कम करने के लिए लड़ सकते हैं, हम अभी भी अपनी हवा को शुद्ध करने की कोशिश कर सकते हैं, हम अभी भी अपनी आने वाली पीढ़ियों को एक स्वस्थ श्वसन प्रणाली दे सकते हैं और एक मौका है कि हम अपने स्वयं के सिस्टम को भी मजबूत कर सकते हैं। हमें बस सही दिशा में काम शुरू करने की जरूरत है।

हमने पानी खरीद के पीना शुरू कर दिया और आज ये एक सामान्य बात हो गयी , सांस लेने के लिए हवा खरीदना सामान्य न होने दें। 

यदि हम अपने घरों के बाहर पानी से भरे  मिट्टी  के घड़े रखने शुरू कर दें तो शायद बिना पैसे दिए किसी की प्यास बुझा सकते है, और यदि हम हर महीने एक पेड़ लगा कर वातावरण को ठीक करने की कोशिश करे तो शायद हमे ऑक्सीजन खरीदने की ज़रूरत भी काम पड़े।  



Comments

  1. सही बात...
    समय रहते सही दिशा में कदम उठाना आज की पहली जरूरत है।
    हर व्यक्ती को अपने जन्मदिन पर पेड़ लगाना चाहिये। हर एक आदमी की कोशिश से आनेवाली हमारी पीढ़ी सुरक्षित रहेगी।

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    1. Its a good Idea. APne birthday pe you can help give life to a new seed.

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  2. समय रहते सभंल जायेगें तो सुरक्षित रहेगें
    अगर पेड़ ना लगा सके तो लगे हुए पेड़ों की हिफाजत कर सकें तो, भी अच्छा होगा
    घरों में गमलो से शुरूआत की जा सकती हैं

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    1. true. Atleast ek paudha to laga hi sakte hai.

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